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जीवन एक पाठशाला - लेखनी प्रतियोगिता -07-Jun-2022

बच्चे को जीवन पाठ सिखाए कहलाए पाठशाला
सुमार्ग की पहचान कराए, कुचक्रो का खोले ताला।

बच्चे की प्रथम पाठशाला होता है उसका परिवार
आपसी प्रेम व सहिष्णुता का जहाँ सीखे संस्कार।

माँ प्रथम शिक्षिका बन मृदुल बोल, सदाचार सिखाए
पिता उंगली पकड़ जीवन राह पर चलना बतलाते।

संग दादा-दादी बच्चे सीखें रिश्तों की मर्यादा व प्यार
परस्पर सहयोग की डोर में बंध खुशियाँ मिले अपार।

अपनी प्रथम पाठशाला को जब बच्चा करता पार
उसके लिए खुल जाते हैं दूजी  पाठशाला के द्वार।

बच्चे के लिए उसकी दूसरी पाठशाला होती विद्यालय
जहाँ उसके जीवन में समा जाती है एक नई लय।

गुरुजन अपनी छत्र-छाया में रोपते हैं छात्र रुपी बीज
सर्वगुण रुपी खाद डाल और मूल्यों के जल से सींच।

बन कुम्हार कच्ची मिट्टी को ढांचे में ढाल देते आकार
विविध गुणों से परिपूर्ण कर सपनों को करते साकार।

उचित-अनुचित का भेद बता करते संघर्ष हेतु तैयार
कभी नारियल सम कठोर बनते, कभी लुटाते प्यार।

विद्यालय के बाद होता जीवन की पाठशाला में प्रवेश
पल-पल उनके मार्ग में आते रहते तरह-तरह के क्लेश।

जिंदगी लेती रहती हरदम अनेक प्रकार के इम्तिहान
लक्ष्य प्राप्ति मार्ग की कठिनाइयों की कराती पहचान।

ये हँसाती, कभी रुलाती,जीवन के विविध रूप दिखाती
जीवन रूपी पाठशाला संघर्षों से हमें लड़ना सिखाती।

हर एक पाठशाला का होता है अपना अलग ही महत्त्व
जिनसे ज्ञान प्राप्त कर प्रतिपल जिंदगी का बढ़ता सत्व।

जिंदगी पढ़ाती रहती है कोई न कोई पाठ जीवन पर्यंत
इसलिए जीवन रूपी पाठशाला का कभी न होता अंत।

डॉ. अर्पिता अग्रवाल

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9 Comments

Seema Priyadarshini sahay

10-Jun-2022 10:50 AM

बेहतरीन रचना

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Shrishti pandey

08-Jun-2022 01:51 PM

Nice

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Punam verma

08-Jun-2022 01:27 PM

Nice

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